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Japji Sahib Path PDF In Hindi Free | जपजी साहिब पाठ हिंदी 2023

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धाराप्रवाह पाठकों के लिए शुभकामनाएं: जपजी साहिब पाठ / Japji Sahib Path PDF के लिए पीडीएफ हिंदी में एक्सेस प्राप्त करें।

विचारशीलता, मनोरंजकता और आध्यात्मिकता के युग में हमारे मन के लिए शांति और समृद्धि का स्रोत ढूंढ़ना आवश्यक है। धार्मिक लेखों, पुराणों, और ग्रंथों में से एक हमारे जीवन में शांति और अद्वितीयता का मार्ग दिखा सकता है – जपजी साहिब। जपजी साहिब एक गुरबाणी है जो सिख धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस लेख में, हम जानेंगे कि जपजी साहिब का पाठ हिंदी में कैसे किया जाता है और इसके पीडीएफ विकल्प की महत्ता क्या है।

जपजी साहिब पाठ हिंदी | Japji Sahib Path PDF Details

japji sahib path pdf in hindi
TopicJapji Sahib Path
LanguageHindi
Meaning“The Song of the Soul”
AuthorGuru Nanak Dev Ji
ImportanceEssential prayer in Sikhism
Length38 stanzas
PurposeMeditation, spiritual reflection
ThemeUnity, divine wisdom, liberation
StructureIntroduction, 38 pauris (stanzas)
RecitationChanting or reading aloud
BenefitsSpiritual growth, inner peace, clarity
Daily PracticeRecommended for Sikhs
TranslationAvailable in English and other languages
AccessibilityOnline resources, books, audio recordings
Historical SignificanceComposed by Guru Nanak Dev Ji
Universal AppealPracticed by Sikhs and spiritual seekers
PDF NameJapji Sahib Path PDF
PDF Size0.10 MB
Number of Pages12 pages
Sourcepdfloadr.com

जपजी साहिब का महत्व

जपजी साहिब गुरु नानक देव जी द्वारा लिखा गया है और ग्रंथ साहिब में स्थान प्राप्त किया है। यह एक प्रार्थना, मंत्र और संग्रहीत ज्ञान का संग्रह है जो मानव जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करता है। जपजी साहिब का पाठ करने से हम अपने अंतरात्मा को प्रशांति और समृद्धि का अनुभव करते हैं।

जपजी साहिब की संरचना

जपजी साहिब की संरचना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि हम उसके मानसिक और आध्यात्मिक सन्देशों को समझ सकें। यह ग्रंथ कुछ मुख्य भागों में विभाजित है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण भाग है मूल मंत्र, जिसे हमारे सिख धर्म में “इक ओंकार” के रूप में जानते हैं। मूल मंत्र में इकवींकार, सबका एक परमेश्वर के रूप में महत्त्वपूर्ण संकेत दिया गया है।

जपजी साहिब में कई पौरियां (स्तंज) हैं जो सभी अपने अद्वितीय विषयों पर विचार करती हैं। हर पौरी का अपना एक विशेष अर्थ और सन्देश होता है, जो हमें आध्यात्मिकता, दया, सत्य और सहजता के बारे में सिखाती हैं।

जपजी साहिब के पाठ / Japji Sahib Path के लाभ

जपजी साहिब पाठ करने के कई आध्यात्मिक, मानसिक, और शारीरिक लाभ होते हैं। इसके पाठ से हम अपने आत्मा को पवित्र करते हैं और उच्चतम ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त करते हैं।

आध्यात्मिक लाभ

जपजी साहिब के पाठ से हम अपने आत्मा को शुद्ध और प्रकाशमय बनाते हैं। इससे हमें अपनी भूल चूक को छोड़कर सत्य और आध्यात्मिकता की ओर ध्यान केंद्रित करने का अनुभव होता है। जपजी साहिब के पाठ से हम अपने जीवन को गुरु नानक देव जी के संदेशों के आधार पर जीने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

मानसिक और भावनात्मक लाभ

जपजी साहिब पाठ करने से हमारा मन शांत होता है और हमें एक उज्ज्वल और पूर्णतापूर्ण भावना का अनुभव होता है। इससे हम चिंता, तनाव, और दुख से मुक्त होते हैं और आनंद के साथ जीवन का आनंद उठा सकते हैं।

शारीरिक लाभ

जपजी साहिब पाठ करने से हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर भी एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे हमारा मन और शरीर संतुलित होते हैं, जो रोगों के खिलाफ रक्षा करता है और हमें ऊर्जा और ताकत प्रदान करता है।

जपजी साहिब पाठ करने का तरीका / Japji Sahib Path

जपजी साहिब पाठ करने के लिए हमें कुछ स्तर्यापन की आवश्यकता होती है और इसे ठीक से करने के लिए कुछ चरणों का पालन करना होता है।

जपजी साहिब पाठ के लिए तैयारी करना

जपजी साहिब पाठ करने से पहले हमें अपने शरीर को स्नान करना चाहिए और एक शुद्ध स्थान पर बैठना चाहिए। हमें आत्म-अध्ययन और ध्यान के लिए भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

जपजी साहिब पाठ का पाठ करना

जपजी साहिब पाठ / Japji Sahib Path करने के लिए हमें धीरे-धीरे और सावधानीपूर्वक प्रत्येक पौरी को पढ़ना चाहिए। हमें इसे अच्छी तरह से समझना चाहिए और उसके आधार पर आत्म-चिंतन करना चाहिए। यदि हम इसे समझ नहीं सकते हैं, तो हमें किसी विशेषज्ञ से मदद लेनी चाहिए।

जपजी साहिब पाठ के बाद का अनुभव

जपजी साहिब के पाठ के बाद, हमें इसे अपने जीवन में समाविष्ट करने की कोशिश करनी चाहिए। हमें इसके विचारों को अपने आचार और विचारों में दिखने की कोशिश करनी चाहिए और इसके संदेशों को अपने जीवन की गुणवत्ता के लिए उपयोग में लाना चाहिए।

जपजी साहिब पाठ पीडीएफ विकल्प

जपजी साहिब पाठ / Japji Sahib Path पीडीएफ विकल्प एक उपयोगी साधन है जो हमें जपजी साहिब का पाठ करने के लिए आसानी से उपलब्ध कराता है। यह ऑनलाइन पाठ करने के लिए अच्छा संसाधन होता है जहां हम उपयुक्त पीडीएफ फ़ाइल डाउनलोड करके इसे अपने सुविधानुसार पढ़ सकते हैं।

इसके साथ ही, हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि हम सत्यापित स्रोतों से मान्यता प्राप्त करते हैं और जिस पीडीएफ फ़ाइल को हम डाउनलोड कर रहे हैं, वह वास्तविक और सत्यापित होती है।

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जपजी साहिब पाठ PDF / Japji Sahib Path PDF In Hindi Download

ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥

॥ जपु ॥

आदि सचु जुगादि सचु ॥ है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥१॥

सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥ चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार ॥ भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥ सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि ॥ किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पालि ॥ हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ॥१॥

हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई ॥ हुकमी होवनि जीअ हुकमि मिलै वडिआई ॥ हुकमी उतमु नीचु हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि ॥ इकना हुकमी बखसीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि ॥ हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ ॥ नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ ॥२॥

गावै को ताणु होवै किसै ताणु ॥ गावै को दाति जाणै नीसाणु ॥ गावै को गुण वडिआईआ चार ॥ गावै को विदिआ विखमु वीचारु ॥ गावै को साजि करे तनु खेह ॥ गावै को जीअ लै फिरि देह ॥ गावै को जापै दिसै दूरि ॥ गावै को वेखै हादरा हदूरि ॥ कथना कथी न आवै तोटि ॥ कथि कथि कथी कोटी कोटि कोटि ॥ देदा दे लैदे थकि पाहि ॥ जुगा जुगंतरि खाही खाहि ॥ हुकमी हुकमु चलाए राहु ॥ नानक विगसै वेपरवाहु ॥३॥

साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु ॥ आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातारु ॥ फेरि कि अगै रखीऐ जितु दिसै दरबारु ॥ मुहौ कि बोलणु बोलीऐ जितु सुणि धरे पिआरु ॥ अम्रित वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु ॥ करमी आवै कपड़ा नदरी मोखु दुआरु ॥ नानक एवै जाणीऐ सभु आपे सचिआरु ॥४॥

थापिआ न जाइ कीता न होइ ॥ आपे आपि निरंजनु सोइ ॥ जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु ॥ नानक गावीऐ गुणी निधानु ॥ गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ ॥ दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ ॥ गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं गुरमुखि रहिआ समाई ॥ गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ॥ जे हउ जाणा आखा नाही कहणा कथनु न जाई ॥ गुरा इक देहि बुझाई ॥ सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥५॥

तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ करी ॥ जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिलै लई ॥ मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी ॥ गुरा इक देहि बुझाई ॥ सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥६॥

जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होइ ॥ नवा खंडा विचि जाणीऐ नालि चलै सभु कोइ ॥ चंगा नाउ रखाइ कै जसु कीरति जगि लेइ ॥ जे तिसु नदरि न आवई त वात न पुछै के ॥ कीटा अंदरि कीटु करि दोसी दोसु धरे ॥ नानक निरगुणि गुणु करे गुणवंतिआ गुणु दे ॥ तेहा कोइ न सुझई जि तिसु गुणु कोइ करे ॥७॥

सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ ॥ सुणिऐ धरति धवल आकास ॥ सुणिऐ दीप लोअ पाताल ॥ सुणिऐ पोहि न सकै कालु ॥ नानक भगता सदा विगासु ॥ सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥८॥

सुणिऐ ईसरु बरमा इंदु ॥ सुणिऐ मुखि सालाहण मंदु ॥ सुणिऐ जोग जुगति तनि भेद ॥ सुणिऐ सासत सिम्रिति वेद ॥ नानक भगता सदा विगासु ॥ सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥९॥

सुणिऐ सतु संतोखु गिआनु ॥ सुणिऐ अठसठि का इसनानु ॥ सुणिऐ पड़ि पड़ि पावहि मानु ॥ सुणिऐ लागै सहजि धिआनु ॥ नानक भगता सदा विगासु ॥ सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥१०॥

सुणिऐ सरा गुणा के गाह ॥ सुणिऐ सेख पीर पातिसाह ॥ सुणिऐ अंधे पावहि राहु ॥ सुणिऐ हाथ होवै असगाहु ॥ नानक भगता सदा विगासु ॥ सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥११॥

मंने की गति कही न जाइ ॥ जे को कहै पिछै पछुताइ ॥ कागदि कलम न लिखणहारु ॥ मंने का बहि करनि वीचारु ॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१२॥

मंनै सुरति होवै मनि बुधि ॥ मंनै सगल भवण की सुधि ॥ मंनै मुहि चोटा ना खाइ ॥ मंनै जम कै साथि न जाइ ॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१३॥

मंनै मारगि ठाक न पाइ ॥ मंनै पति सिउ परगटु जाइ ॥ मंनै मगु न चलै पंथु ॥ मंनै धरम सेती सनबंधु ॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१४॥

मंनै पावहि मोखु दुआरु ॥ मंनै परवारै साधारु ॥ मंनै तरै तारे गुरु सिख ॥ मंनै नानक भवहि न भिख ॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१५॥

पंच परवाण पंच परधानु ॥ पंचे पावहि दरगहि मानु ॥ पंचे सोहहि दरि राजानु ॥ पंचा का गुरु एकु धिआनु ॥ जे को कहै करै वीचारु ॥ करते कै करणै नाही सुमारु ॥ धौलु धरमु दइआ का पूतु ॥ संतोखु थापि रखिआ जिनि सूति ॥ जे को बुझै होवै सचिआरु ॥ धवलै उपरि केता भारु ॥ धरती होरु परै होरु होरु ॥ तिस ते भारु तलै कवणु जोरु ॥ जीअ जाति रंगा के नाव ॥ सभना लिखिआ वुड़ी कलाम ॥ एहु लेखा लिखि जाणै कोइ ॥ लेखा लिखिआ केता होइ ॥ केता ताणु सुआलिहु रूपु ॥ केती दाति जाणै कौणु कूतु ॥ कीता पसाउ एको कवाउ ॥ तिस ते होए लख दरीआउ ॥ कुदरति कवण कहा वीचारु ॥ वारिआ न जावा एक वार ॥ जो तुधु भावै साई भली कार ॥ तू सदा सलामति निरंकार ॥१६॥

असंख जप असंख भाउ ॥ असंख पूजा असंख तप ताउ ॥ असंख गरंथ मुखि वेद पाठ ॥ असंख जोग मनि रहहि उदास ॥ असंख भगत गुण गिआन वीचार ॥ असंख सती असंख दातार ॥ असंख सूर मुह भख सार ॥ असंख मोनि लिव लाइ तार ॥ कुदरति कवण कहा वीचारु ॥ वारिआ न जावा एक वार ॥ जो तुधु भावै साई भली कार ॥ तू सदा सलामति निरंकार ॥१७॥

असंख मूरख अंध घोर ॥ असंख चोर हरामखोर ॥ असंख अमर करि जाहि जोर ॥ असंख गलवढ हतिआ कमाहि ॥ असंख पापी पापु करि जाहि ॥ असंख कूड़िआर कूड़े फिराहि ॥ असंख मलेछ मलु भखि खाहि ॥ असंख निंदक सिरि करहि भारु ॥ नानकु नीचु कहै वीचारु ॥ वारिआ न जावा एक वार ॥ जो तुधु भावै साई भली कार ॥ तू सदा सलामति निरंकार ॥१८॥

असंख नाव असंख थाव ॥ अगम अगम असंख लोअ ॥ असंख कहहि सिरि भारु होइ ॥ अखरी नामु अखरी सालाह ॥ अखरी गिआनु गीत गुण गाह ॥ अखरी लिखणु बोलणु बाणि ॥ अखरा सिरि संजोगु वखाणि ॥ जिनि एहि लिखे तिसु सिरि नाहि ॥ जिव फुरमाए तिव तिव पाहि ॥ जेता कीता तेता नाउ ॥ विणु नावै नाही को थाउ ॥ कुदरति कवण कहा वीचारु ॥ वारिआ न जावा एक वार ॥ जो तुधु भावै साई भली कार ॥ तू सदा सलामति निरंकार ॥१९॥

भरीऐ हथु पैरु तनु देह ॥ पाणी धोतै उतरसु खेह ॥ मूत पलीती कपड़ु होइ ॥ दे साबूणु लईऐ ओहु धोइ ॥ भरीऐ मति पापा कै संगि ॥ ओहु धोपै नावै कै रंगि ॥ पुंनी पापी आखणु नाहि ॥ करि करि करणा लिखि लै जाहु ॥ आपे बीजि आपे ही खाहु ॥ नानक हुकमी आवहु जाहु ॥२०॥

तीरथु तपु दइआ दतु दानु ॥ जे को पावै तिल का मानु ॥ सुणिआ मंनिआ मनि कीता भाउ ॥ अंतरगति तीरथि मलि नाउ ॥ सभि गुण तेरे मै नाही कोइ ॥ विणु गुण कीते भगति न होइ ॥ सुअसति आथि बाणी बरमाउ ॥ सति सुहाणु सदा मनि चाउ ॥ कवणु सु वेला वखतु कवणु कवण थिति कवणु वारु ॥ कवणि सि रुती माहु कवणु जितु होआ आकारु ॥ वेल न पाईआ पंडती जि होवै लेखु पुराणु ॥ वखतु न पाइओ कादीआ जि लिखनि लेखु कुराणु ॥ थिति वारु ना जोगी जाणै रुति माहु ना कोई ॥ जा करता सिरठी कउ साजे आपे जाणै सोई ॥ किव करि आखा किव सालाही किउ वरनी किव जाणा ॥ नानक आखणि सभु को आखै इक दू इकु सिआणा ॥ वडा साहिबु वडी नाई कीता जा का होवै ॥ नानक जे को आपौ जाणै अगै गइआ न सोहै ॥२१॥

पाताला पाताल लख आगासा आगास ॥ ओड़क ओड़क भालि थके वेद कहनि इक वात ॥ सहस अठारह कहनि कतेबा असुलू इकु धातु ॥ लेखा होइ त लिखीऐ लेखै होइ विणासु ॥ नानक वडा आखीऐ आपे जाणै आपु ॥२२॥

सालाही सालाहि एती सुरति न पाईआ ॥ नदीआ अतै वाह पवहि समुंदि न जाणीअहि ॥ समुंद साह सुलतान गिरहा सेती मालु धनु ॥ कीड़ी तुलि न होवनी जे तिसु मनहु न वीसरहि ॥२३॥

अंतु न सिफती कहणि न अंतु ॥ अंतु न करणै देणि न अंतु ॥ अंतु न वेखणि सुणणि न अंतु ॥ अंतु न जापै किआ मनि मंतु ॥ अंतु न जापै कीता आकारु ॥ अंतु न जापै पारावारु ॥ अंत कारणि केते बिललाहि ॥ ता के अंत न पाए जाहि ॥ एहु अंतु न जाणै कोइ ॥ बहुता कहीऐ बहुता होइ ॥ वडा साहिबु ऊचा थाउ ॥ ऊचे उपरि ऊचा नाउ ॥ एवडु ऊचा होवै कोइ ॥ तिसु ऊचे कउ जाणै सोइ ॥ जेवडु आपि जाणै आपि आपि ॥ नानक नदरी करमी दाति ॥२४॥

बहुता करमु लिखिआ ना जाइ ॥ वडा दाता तिलु न तमाइ ॥ केते मंगहि जोध अपार ॥ केतिआ गणत नही वीचारु ॥ केते खपि तुटहि वेकार ॥ केते लै लै मुकरु पाहि ॥ केते मूरख खाही खाहि ॥ केतिआ दूख भूख सद मार ॥ एहि भि दाति तेरी दातार ॥ बंदि खलासी भाणै होइ ॥ होरु आखि न सकै कोइ ॥ जे को खाइकु आखणि पाइ ॥ ओहु जाणै जेतीआ मुहि खाइ ॥ आपे जाणै आपे देइ ॥ आखहि सि भि केई केइ ॥ जिस नो बखसे सिफति सालाह ॥ नानक पातिसाही पातिसाहु ॥२५॥

अमुल गुण अमुल वापार ॥ अमुल वापारीए अमुल भंडार ॥ अमुल आवहि अमुल लै जाहि ॥ अमुल भाइ अमुला समाहि ॥ अमुलु धरमु अमुलु दीबाणु ॥ अमुलु तुलु अमुलु परवाणु ॥ अमुलु बखसीस अमुलु नीसाणु ॥ अमुलु करमु अमुलु फुरमाणु ॥ अमुलो अमुलु आखिआ न जाइ ॥ आखि आखि रहे लिव लाइ ॥ आखहि वेद पाठ पुराण ॥ आखहि पड़े करहि वखिआण ॥ आखहि बरमे आखहि इंद ॥ आखहि गोपी तै गोविंद ॥ आखहि ईसर आखहि सिध ॥ आखहि केते कीते बुध ॥ आखहि दानव आखहि देव ॥ आखहि सुरि नर मुनि जन सेव ॥ केते आखहि आखणि पाहि ॥ केते कहि कहि उठि उठि जाहि ॥ एते कीते होरि करेहि ॥ ता आखि न सकहि केई केइ ॥ जेवडु भावै तेवडु होइ ॥ नानक जाणै साचा सोइ ॥ जे को आखै बोलुविगाड़ु ॥ ता लिखीऐ सिरि गावारा गावारु ॥२६॥

सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥ वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥ केते राग परी सिउ कहीअनि केते गावणहारे ॥ गावहि तुहनो पउणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥ गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि लिखि लिखि धरमु वीचारे ॥ गावहि ईसरु बरमा देवी सोहनि सदा सवारे ॥ गावहि इंद इदासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥ गावहि सिध समाधी अंदरि गावनि साध विचारे ॥ गावनि जती सती संतोखी गावहि वीर करारे ॥ गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले ॥ गावहि मोहणीआ मनु मोहनि सुरगा मछ पइआले ॥ गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥ गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे ॥ गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे ॥ सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥ होरि केते गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ वीचारे ॥ सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥ है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥ रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥ करि करि वेखै कीता आपणा जिव तिस दी वडिआई ॥ जो तिसु भावै सोई करसी हुकमु न करणा जाई ॥ सो पातिसाहु साहा पातिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥२७॥

मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूति ॥ खिंथा कालु कुआरी काइआ जुगति डंडा परतीति ॥ आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीतु ॥ आदेसु तिसै आदेसु ॥ आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२८॥

भुगति गिआनु दइआ भंडारणि घटि घटि वाजहि नाद ॥ आपि नाथु नाथी सभ जा की रिधि सिधि अवरा साद ॥ संजोगु विजोगु दुइ कार चलावहि लेखे आवहि भाग ॥ आदेसु तिसै आदेसु ॥ आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२९॥

एका माई जुगति विआई तिनि चेले परवाणु ॥ इकु संसारी इकु भंडारी इकु लाए दीबाणु ॥ जिव तिसु भावै तिवै चलावै जिव होवै फुरमाणु ॥ ओहु वेखै ओना नदरि न आवै बहुता एहु विडाणु ॥ आदेसु तिसै आदेसु ॥ आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥३०॥

आसणु लोइ लोइ भंडार ॥ जो किछु पाइआ सु एका वार ॥ करि करि वेखै सिरजणहारु ॥ नानक सचे की साची कार ॥ आदेसु तिसै आदेसु ॥ आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥३१॥

इक दू जीभौ लख होहि लख होवहि लख वीस ॥ लखु लखु गेड़ा आखीअहि एकु नामु जगदीस ॥ एतु राहि पति पवड़ीआ चड़ीऐ होइ इकीस ॥ सुणि गला आकास की कीटा आई रीस ॥ नानक नदरी पाईऐ कूड़ी कूड़ै ठीस ॥३२॥

आखणि जोरु चुपै नह जोरु ॥ जोरु न मंगणि देणि न जोरु ॥ जोरु न जीवणि मरणि नह जोरु ॥ जोरु न राजि मालि मनि सोरु ॥ जोरु न सुरती गिआनि वीचारि ॥ जोरु न जुगती छुटै संसारु ॥ जिसु हथि जोरु करि वेखै सोइ ॥ नानक उतमु नीचु न कोइ ॥३३॥

राती रुती थिती वार ॥ पवण पाणी अगनी पाताल ॥ तिसु विचि धरती थापि रखी धरम साल ॥ तिसु विचि जीअ जुगति के रंग ॥ तिन के नाम अनेक अनंत ॥ करमी करमी होइ वीचारु ॥ सचा आपि सचा दरबारु ॥ तिथै सोहनि पंच परवाणु ॥ नदरी करमि पवै नीसाणु ॥ कच पकाई ओथै पाइ ॥ नानक गइआ जापै जाइ ॥३४॥

धरम खंड का एहो धरमु ॥ गिआन खंड का आखहु करमु ॥ केते पवण पाणी वैसंतर केते कान महेस ॥ केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि रूप रंग के वेस ॥ केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस ॥ केते इंद चंद सूर केते केते मंडल देस ॥ केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस ॥ केते देव दानव मुनि केते केते रतन समुंद ॥ केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥ केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंतु न अंतु ॥३५॥

गिआन खंड महि गिआनु परचंडु ॥ तिथै नाद बिनोद कोड अनंदु ॥ सरम खंड की बाणी रूपु ॥ तिथै घाड़ति घड़ीऐ बहुतु अनूपु ॥ ता कीआ गला कथीआ ना जाहि ॥ जे को कहै पिछै पछुताइ ॥ तिथै घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि ॥ तिथै घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि ॥३६॥

करम खंड की बाणी जोरु ॥ तिथै होरु न कोई होरु ॥ तिथै जोध महाबल सूर ॥ तिन महि रामु रहिआ भरपूर ॥ तिथै सीतो सीता महिमा माहि ॥ ता के रूप न कथने जाहि ॥ ना ओहि मरहि न ठागे जाहि ॥ जिन कै रामु वसै मन माहि ॥ तिथै भगत वसहि के लोअ ॥ करहि अनंदु सचा मनि सोइ ॥ सच खंडि वसै निरंकारु ॥ करि करि वेखै नदरि निहाल ॥ तिथै खंड मंडल वरभंड ॥ जे को कथै त अंत न अंत ॥ तिथै लोअ लोअ आकार ॥ जिव जिव हुकमु तिवै तिव कार ॥ वेखै विगसै करि वीचारु ॥ नानक कथना करड़ा सारु ॥३७॥

जतु पाहारा धीरजु सुनिआरु ॥ अहरणि मति वेदु हथीआरु ॥ भउ खला अगनि तप ताउ ॥ भांडा भाउ अम्रितु तितु ढालि ॥ घड़ीऐ सबदु सची टकसाल ॥ जिन कउ नदरि करमु तिन कार ॥ नानक नदरी नदरि निहाल ॥३८॥

॥ सलोकु ॥

पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु ॥ दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु ॥ चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि ॥ करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूरि ॥ जिनी नामु धिआइआ गए मसकति घालि ॥ नानक ते मुख उजले केती छुटी नालि ॥१॥

अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न / FAQ

1. क्या जपजी साहिब पाठ करने से मेरे दिनचर्या पर कोई प्रभाव पड़ेगा?

जी हां, जपजी साहिब पाठ करने से आपके दिनचर्या पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह आपको चिंता और तनाव से मुक्त करके आपको शांति और स्थिरता का अनुभव कराएगा।

2. क्या मैं जपजी साहिब पाठ का अनुवाद इंग्लिश में प्राप्त कर सकता हूँ?

हाँ, जपजी साहिब पाठ / Japji Sahib Path का अनुवाद इंग्लिश में उपलब्ध है। आप इंटरनेट पर खोज करके अनुवादित टेक्स्ट या पीडीएफ फ़ाइल ढूंढ सकते हैं।

3. क्या मुझे जपजी साहिब का पाठ रोज़ाना करना चाहिए?

जी हां, यदि आपको यह संभव होता है, तो आपको जपजी साहिब का पाठ रोज़ाना करना चाहिए। नियमित रूप से पाठ करने से आपको आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ मिलेगा और आपका मन और शरीर संतुलित रहेंगे।

4. क्या मैं जपजी साहिब पाठ / Japji Sahib Path का ध्यान रखते हुए किसी अन्य काम कर सकता हूँ?

हाँ, आप जपजी साहिब पाठ के दौरान ध्यान रखते हुए किसी अन्य काम कर सकते हैं, जैसे कि गर्म पानी से नहाना, उपासना करना, योग करना या ध्यान में लगने की व्यायाम या कोई शांति और चिंतन में रहने वाली गतिविधि।

5. क्या मुझे जपजी साहिब पाठ के लिए किसी गुरु की आवश्यकता है?

नहीं, आपको जपजी साहिब पाठ / Japji Sahib Path करने के लिए किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है। आप अपने आपसे पाठ कर सकते हैं या इंटरनेट पर उपयुक्त संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं जो आपको सही मार्गदर्शन और समझ प्रदान करते हैं।

निष्कर्ष

जपजी साहिब पाठ हिंदी में करने का अपना एक अद्वितीय अनुभव हो सकता है। यह हमें आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ प्रदान करता है और हमें गुरु नानक देव जी के संदेशों को अपने जीवन में समाविष्ट करने की प्रेरणा देता है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से हमें सकारात्मक और उद्घाटनापूर्ण जीवन का अनुभव होता है।

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